नई दिल्ली (एडीएनए)
सोवियत संघ का विमान मिग-21 ध्वनि की दोगुनी गति से उड़ान भर सकता है। रूस के एयरोस्पेस ने इसे डिजाइन करते समय कई अदम्य क्षमताओं से भी सुसज्जित किया। 1955 में इसने पहली बार उड़ान भरी। अन्य लड़ाकू विमानों की तुलना में यह ज्यादा मारक और हल्का है। इसकी लागत भी अन्य बमवर्षक विमानों की अपेक्षा कम है। रखरखाव में भी कम खर्चीला है। युद्धाभ्यास के दौरान सबसे ज्यादा मिग-21 विमानों का भी प्रयोग किया जाता है। एक सर्वे के मुताबिक सोवियत संघ और 40 से अधिक देशों की वायुसेनाओं के लिए 32 से ज्यादा संस्करण लांच किए गए। करीब नौ हजार से अधिक मिग-21 विमानों का निर्माण किया गया। अपनी तमाम खूबियों के कारण ही वितयनाम में यह विमान उच्च ऊंचाई इंटरसेप्टर वाला विमान बन गया। यह भी कहा जाता है कि 1970 के दशक में अरब वायुसेनाओं के लिए यह विमान रीढ़ की हड्डी के रूप में जाना जाने लगा। यही नहीं, इसकी खूबियों के कारण ही पश्चिमी देशों की सेनाओं ने इसमें फिशबेड का नाम भी दिया। 1985 में निर्माण बंद करने से पहले यूएसएसआर ने 10 हजार से ज्यादा मिग-21 बनाए थे।
भारतीय वायुसेना में मिग-21 साल 1963 में शामिल किया गया। कई साल तक यह एक मजबूत सैन्य ताकत के रूप में रहा। सोवियत संघ ने इस सुपरसोनिक फाइटर प्लेन के कई वेरिएंट बनाए जिनमें मिग-21पीएफ रहा। यह एक इंटरसेप्टर वेरिएंट रहा जो हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों को ले जाने में समक्ष रहा। मिग-21एस में हवा में और हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलें ले जा सकता था। इसके अलावा मिग-21एफ वेरिएंट रहा जो कि दो सीट वाला प्रशिक्षण विमान रहा। रोचक बात यह है कि मिग-21 को कुछ देश फ्लाइंग कॉफिन यानि कि उड़ता ताबूत भी कहते थे। क्योंकि यह हादसों के लिए भी जाना गया।