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विमान निर्माण में दुनिया ने तय किया लंबा सफर

एक समय था जब आकाश में उड़ने वाले विमान लकड़ी और कपड़े से बनाए जाते थे। लेकिन आज, अत्याधुनिक विमान कार्बन फाइबर, टाइटेनियम मिश्र धातुओं और हाई-टेक कंपोजिट मटेरियल्स से बनाए जा रहे हैं। यह बदलाव सिर्फ डिजाइन या गति में नहीं, बल्कि सुरक्षा, ईंधन दक्षता और पर्यावरण संरक्षण में भी क्रांतिकारी साबित हो रहा है। विमानन क्षेत्र का यह विकास केवल तकनीकी चमत्कार नहीं, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान और इंजीनियरिंग में दशकों की मेहनत का नतीजा है। 
शुरुआत से आज तकविमान निर्माण में धातुओं का चुनाव उनकी हल्कीपन, मजबूती और स्थायित्व पर निर्भर करता है। समय के साथ तकनीकी प्रगति के कारण एयरक्राफ्ट बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाली धातुओं में भारी बदलाव आया है। आइए, इसकी पूरी जानकारी प्राप्त करें।

लकड़ी और कपड़े का युग

- शुरुआती दौर 1900-1920 में लकड़ी और कपड़े का युग था। पहले विमानों (जैसे राइट ब्रदर्स का फ्लायर) में लकड़ी (बाँस, स्प्रूस) और कपड़े (मसलिन) का उपयोग होता था। इंजन और फ्रेम के लिए स्टील और एल्युमीनियम का सीमित प्रयोग किया जाता था। जिसमें प्रमुख धातुएँ जैसे स्टील, फ्रेम और इंजन पार्ट्स में एल्युमीनियम कुछ हिस्सों में, क्योंकि यह महँगी थी।_

विमान निर्माण में एल्युमीनियम का उदय

-. 1920 से 1940 के दौर में एल्युमीनियम का उदय प्रथम विश्व युद्ध के बाद एल्युमीनियम मिश्र धातुओं (जैसे ड्यूरालुमिन) का उपयोग बढ़ा। यह हल्की, मजबूत और जंगरोधी थी। प्रमुख धातुएँ    जैसे एल्युमीनियम मिश्र, फ्रेम और बॉडी में और स्टील का प्रयोग लैंडिंग गियर और इंजन में प्रमुख रुप से हुआ। उदाहरण में डगलस DC-3 (1935) में एल्युमीनियम का भरपूर उपयोग हुआ।

जेट युग और नई मिश्र धातु का उपयोग

-. 1940 से 1960 के दौर में जेट युग और नई मिश्र धातुओं का प्रवेश जेट इंजनों के आने से विमानों को अधिक ताप और दबाव सहने वाली धातुओं की आवश्यकता हुई। जिसमें प्रमुख धातुएं• जैसी     टाइटेनियम का जेट इंजन और हाई-टेम्प्रेचर पार्ट्स में उपयोग होता था।• और स्टेनलेस स्टील का इंजन कंपोनेंट्स में तथा एल्युमीनियम जिंक मिश्र का अधिक मजबूती के लिए उपयोग होने लगा। उदाहरण के तौर पर  बोइंग 707 (1958) में एल्युमीनियम और टाइटेनियम का उपयोग अधिक हुआ था।
- 1970 से 2000 के दौर में कंपोजिट मटेरियल्स की शुरुआत ईंधन की बचत और वजन कम करने के लिए कार्बन फाइबर और केवलर जैसे कंपोजिट मटेरियल्स का प्रयोग शुरू हुआ। जिसमें प्रमुख धातुएँ एवं कंपोजिट का उपयोग एल्युमीनियम,लिथियम मिश्र का हल्का और मजबूत के लिए किया जाने लगा।•
    कार्बन फाइबर रेनफोर्स्ड पॉलिमर का विंग्स और फ्यूजलेज में उपयोग होने लगा। उदाहरण के तौर पर एयरबस A320 (1988) में कंपोजिट्स का उपयोग किया गया।
- 2000 से अबतक अत्याधुनिक मिश्र धातुएँ और कंपोजिट्स आधुनिक विमानों में 50% से अधिक कंपोजिट मटेरियल और उन्नत एल्युमीनियम और लिथियम मिश्र का उपयोग होता है। जिसमें प्रमुख सामग्री टाइटेनियम मिश्र का इंजन और स्ट्रक्चरल पार्ट्स में और•    ग्लास-फाइबर कंपोजिट्स का इंटीरियर में उपयोग हो रहा है।• बेरिलियम मिश्र का कुछ विशेष केस में उपयोग होता है जैसे बोइंग 787 ड्रीमलाइनर (2011) और एयरबस A350 में 50% से अधिक कार्बन फाइबर का उपयोग हुआ था।

धातुओं के उपयोग से निष्कर्ष

उन्नत मिश्र धातुएं प्रदर्शन और लागत में सुधार करती हैं, विशेष रूप से वजन में कमी, थकान प्रतिरोध, और संक्षारण प्रतिरोध के कारण. विमान में धातु मिश्र धातुओं और कार्बन फाइबर जैसे हल्के लेकिन मजबूत पदार्थों का उपयोग करना, ईंधन दक्षता बढ़ाता है, पेलोड क्षमता को बढ़ाता है, और समग्र प्रदर्शन को बेहतर बनाता है। एयरक्राफ्ट मटेरियल्स का विकासयुग जिसमें प्रमुख धातु और मटेरियल    का एक उदाहरण विमान 1900-1920 लकड़ी, कपड़ा, स्टील, राइट फ्लायर 1920 से 1940एल्युमीनियम मिश्र (ड्यूरालुमिन)डगलस 1940 से 1960    टाइटेनियम, स्टेनलेस स्टील    बोइंग 1970 से 2000 एल्युमीनियम,लिथियम, कार्बन फाइबर,एयरबस और 2000 से आज तक अत्याधुनिक कंपोजिट्स, टाइटेनियमबोइंग 787, एयरबस A350 आज के विमान हल्के, मजबूत और ईंधन-कुशल हैं, जिसका श्रेय धातु विज्ञान और मटेरियल इंजीनियरिंग में हुई प्रगति को जाता है। भविष्य में ग्रेफीन और नैनो-मटेरियल्स का उपयोग और बढ़ने की संभावना है।

विमानों की खिड़कियाँ सामान्य शीशे से नहीं बनती

एयरक्राफ्ट निर्माण में धातुओं का विकास लकड़ी से लेकर कार्बन फाइबर तक हुआ है, जिससे विमान हल्के, तेज़ और सुरक्षित बने हैं।क्या आप किसी विशेष विमान या धातु के बारे में और जानना चाहेंगे? कौन से विशेष शीशे से बनती एयरक्राफ्ट की विंडोएयरक्राफ्ट विंडो में प्रयुक्त शीशे (ग्लास) और उनकी विशेषताएँ विमानों की खिड़कियाँ (विंडोज़ या कॉकपिट ग्लास) सामान्य शीशे से नहीं बनी होतीं, बल्कि उन्हें उच्च दबाव, तापमान और सुरक्षा मानकों को झेलने के लिए विशेष प्रकार के मटेरियल से बनाया जाता है। आइए जानते हैं कि एयरक्राफ्ट विंडो किससे बनती हैं और उनमें क्या खास होता है।

एयरक्राफ्ट विंडो के लिए प्रयुक्त मुख्य शीशे
(A) एक्रिलिक (PMMA - Polymethyl Methacrylate)•हल्का और टिकाऊ प्लास्टिक ग्लास का प्रयोग प्रोपेलर विमानों और छोटे एयरक्राफ्ट में इस्तेमाल होता है।•    इसके फायदे हल्कापन, सस्ता, आसानी से ढाला जा सकता है। और पराबैंगनी (UV) किरणों को रोकता है।•    इसमें स्क्रैच होने की संभावना अधिक होती है। जेट विमानों में इसका उपयोग होता है।

(B)- मल्टी-लेयर टेम्पर्ड ग्लास (स्ट्रेच्ड ग्लास)• कमर्शियल जेट विमानों (जैसे बोइंग, एयरबस) में उपयोग होता है। इसकी बनावट में तीन परतें होती हैं। पहली बाहरी परत जो टेम्पर्ड ग्लास (दबाव सहने के लिए) दूसरी मध्य परत पॉलीविनाइल ब्यूटिरल (PVB) ध्वनि और कंपन कम करता है। और तीसरी अंदरूनी परत जो एक्रिलिक या टेम्पर्ड ग्लास की सुरक्षा के लिए होती है।• इसमें दरार पड़ने पर भी यह टूटता नहीं, बल्कि छोटे-छोटे टुकड़ों में बिखरता है। आग और बाहरी वस्तुओं से सुरक्षा प्रदान करता है।

(C)- पॉलीकार्बोनेट (Lexan/Makrolon)फाइटर जेट्स और हेलीकॉप्टर विंडशील्ड में उपयोग होता है।• इसके फायदे एक्रिलिक से 250 गुना ज्यादा मजबूत होता है। इसमें गोली और टकराव सहने की क्षमता मिलिट्री एयरक्राफ्ट में उपयोगी होती है।•    यह महँगा और इसमें स्क्रैच होने की संभावना अधिक रहती है।

विंडो की डिज़ाइन और सुरक्षा फीचर्स
एयरक्राफ्ट विंडो की डिज़ाइन और सुरक्षा फीचर्स• हीटिंग सिस्टम में विंडो पर बर्फ न जमे, इसके लिए इलेक्ट्रिक हीटिंग वायर लगे होते हैं। विंडो डिफॉगिंग से नमी हटाने के लिए विंडो में विशेष कोटिंग होती है।• प्रेशर रेजिस्टेंस को  35,000 फीट की ऊँचाई पर केबिन का दबाव सहने की क्षमता रहती है।
एयरक्राफ्ट विंडो साधारण शीशे से नहीं, बल्कि एक्रिलिक, टेम्पर्ड ग्लास या पॉलीकार्बोनेट से बनी होती हैं। इन्हें हल्का, मजबूत और दबाव सहने योग्य बनाया जाता है। आधुनिक विमानों में मल्टी-लेयर डिज़ाइन के कारण खिड़की का टूटना लगभग नामुमकिन है। क्या आप जानते हैं? बोइंग 787 ड्रीमलाइनर की विंडोज़ इलेक्ट्रोक्रोमिक टिंटिंग तकनीक से लैस हैं, जिससे पायलट बटन दबाकर खिड़कियों को हल्का या गहरा कर सकता है।


संक्षिप्त परिचय
शुरुआती दौर में  लकड़ी और स्टील का युग 1903 में राइट ब्रदर्स के ‘फ्लायर’ से शुरू हुई यह यात्रा तब शुरू हुई, जब विमान मुख्य रूप से बाँस, स्प्रूस और मसलिन जैसे हल्के मटेरियल से बनाए जाते थे। इंजन और कुछ ढांचागत हिस्सों में स्टील का सीमित उपयोग होता था। एल्युमीनियम का आगमन (1920-40)प्रथम विश्व युद्ध के बाद ड्यूरालुमिन जैसी मिश्रधातुओं का उपयोग बढ़ा, जिससे विमान हल्के और अधिक मजबूत बनने लगे। डगलस DC-3 जैसे विमानों ने इस तकनीक का भरपूर लाभ उठाया।जेट युग और हाई-टेम्प्रेचर मटेरियल्स (1940-60)जेट इंजनों की आवश्यकता ने टाइटेनियम और स्टेनलेस स्टील जैसे उच्च तापमान-सहिष्णु मटेरियल्स को जन्म दिया। बोइंग 707 जैसे विमान इस युग की पहचान बने। कंपोजिट क्रांति (1970-2000)ईंधन की बचत और अधिक दक्षता के लिए कार्बन फाइबर और केवलर जैसे मटेरियल्स का उपयोग शुरू हुआ। एयरबस A320 ने हल्के और टिकाऊ विमानों की एक नई श्रृंखला को जन्म दिया।वर्तमान और भविष्य (2000-वर्तमान)बोइंग 787 ड्रीमलाइनर और एयरबस A350 जैसे विमान 50% से अधिक कंपोजिट मटेरियल से बने हैं, जिससे वे अधिक हल्के, सुरक्षित और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील हो गए हैं। आगे चलकर ग्रेफीन और नैनो-मटेरियल्स के उपयोग की संभावना भी प्रबल हो रही है।एयरक्राफ्ट विंडो में भी दिखा नवाचारअब विमान की खिड़कियाँ सामान्य शीशे से नहीं, बल्कि मल्टी-लेयर टेम्पर्ड ग्लास, एक्रिलिक (PMMA) और पॉलीकार्बोनेट (Lexan) से बनाई जाती हैं। ये सामग्री न केवल उच्च दबाव और तापमान झेलने में सक्षम हैं, बल्कि आधुनिक तकनीकों जैसे इलेक्ट्रोक्रोमिक टिंटिंग (जैसे ड्रीमलाइनर में) के कारण यात्रा अनुभव को भी और बेहतर बनाती हैं। सुरक्षा में वृद्धि, ईंधन में बचत और गति में तीव्रता यह है आधुनिक विमानन का चेहरा। इस प्रगति के चलते आज हम न केवल अधिक सुरक्षित उड़ानें भरते हैं, बल्कि पर्यावरण को भी कम नुकसान पहुँचाते हैं। आने वाले वर्षों में यह क्षेत्र और भी रोमांचक तकनीकों के साथ हमारे सामने होगा।सचमुच, विज्ञान और नवाचार जब मिलते हैं, तो दुनिया को उड़ान मिलती है।

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