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..तब विमान के इंजन में झोंक दिया जाता था जिंदा मुर्गा..अब नकली पक्षी से होता बर्ड स्ट्राइक टेस्ट

विमान के इंजन में झोंक दिया जाता था जिंदा मुर्दा...अब नकली पक्षी से होता बर्ड स्ट्राइक टेस्ट

नई दिल्ली (एडीएनए)
अहमदाबाद में एयर इंडिया का ड्रीमलाइनर क्रैश होने के बाद विमानों की सुरक्षा को लेकर बहस शुरू हो गई है। अभी यह तय नहीं है कि विमान किन कारणों से क्रैश हुआ लेकिन एक यह थ्योरी भी सामने आयी है कि विमान किसी पक्षी से टकराने से क्रैश हुआ। इसके बाद डीजीसीए ने एयरपोर्टों के आसपास क्षेत्र को साफ रखने और पक्षिय़ों पर नजर रखने के निर्देश जारी किए गए।

जब से विमानों ने हवा में उड़ना शुरू किया तब से ही पक्षियों के टकराने से बचाव के साथ ऐसे टेस्ट भी किए जा रहे हैं कि कोई विमान किसी पक्षी से टकराता भी है तो उसका असर कितना होगा और विमान क्रैश होने से कैसे बचा जा सकता है। कहा जाता है कि शुरुआती दौर (1950-60 के दशक) में जिंदा मुर्गा या कसी मृत पक्षी को विमान के इंजन झोंक कर बर्ड स्ट्राइक टेस्ट किया जाता था लेकिन बाद में इसे पशु क्रूरता माना गया और टेस्टिंग के लिए नकली पक्षियों का इस्तेमाल शुरू किया गया।

क्या होता है बर्ड स्ट्राइक?

जब कोई पक्षी उड़ते हुए विमान से टकरा जाता है, तो उसे बर्ड स्ट्राइक कहा जाता है। यह घटना ज़्यादातर टेक-ऑफ या लैंडिंग के समय होती हैं, जब विमान निचली ऊंचाई पर होता है और पक्षी उसी क्षेत्र में उड़ रहे होते हैं।


बर्ड स्ट्राइक टेस्ट क्यों जरूरी है?

हर साल दुनियाभर में हजारों बर्ड स्ट्राइक की घटनाएं होती हैं।  इससे विमान के इंजन, विंडशील्ड या रडार सिस्टम को गंभीर नुकसान हो सकता है। सुरक्षा को लेकर एविएशन नियमों के अनुसार किसी भी विमान को उड़ान से पहले यह साबित करना होता है कि वह बर्ड स्ट्राइक का सामना कर सकता है।

कैसे होता है बर्ड स्ट्राइक टेस्ट?

टेस्ट में असली पक्षियों की बजाय विशेष जैल से बने नकली पक्षी (gelatin birds) का इस्तेमाल किया जाता है, जिनका वजन और घनत्व असली पक्षियों के बराबर होता है। इन 'बर्ड डमीज़' को अत्यधिक गति से विमान के इंजन या विंडशील्ड पर छोड़ा जाता है। इस नकली पक्षी को इंजन में दागा जाता है यह देखने के लिए कि वह उसे सह सकता है या नहीं। इस समय इंजन को चालू रखा जाता है।

विंडशील्ड और नोज़ टेस्ट

विमान के सामने के हिस्सों पर बर्ड डमी दागे जाते हैं ताकि देखा जा सके कि कांच टूटता है या नहीं।

टेस्ट के नियम और मानक

यह टेस्ट FAA (Federal Aviation Administration) और EASA (European Union Aviation Safety Agency) जैसी संस्थाओं के मानकों के अनुसार किया जाता है। बड़े विमानों के लिए चार पाउंड तक के पक्षी से टकराने के असर को झेलने की क्षमता अनिवार्य होती है। फाइटर जेट्स के लिए अलग मानक होते हैं, क्योंकि उनकी गति ज्यादा होती है।

भारत में कहां होते हैं ये टेस्ट?

भारत में HAL (हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) और DRDO के तहत कुछ विशेष प्रयोगशालाएं इन परीक्षणों को करती हैं।  कई प्राइवेट एविएशन कंपनियां भी विदेशों में अपने विमानों का बर्ड स्ट्राइक टेस्ट कराती हैं।

बर्ड स्ट्राइक से जुड़ी कुछ बड़ी घटनाएं

2009- यूएस एयरवेज फ्लाइट 1549: न्यूयॉर्क से उड़ान भरने के थोड़ी देर बाद दोनों इंजन बर्ड स्ट्राइक के कारण फेल हो गए थे। पायलट कैप्टन सली ने विमान को हडसन नदी में सफलतापूर्वक उतारा। इसी तरह  वाराणसी में इंडिगो की एक फ्लाइट बर्ड स्ट्राइक के कारण टेकऑफ के तुरंत बाद वापस लौट आई थी।

अब क्यों नहीं करते ज़िंदा पक्षी का इस्तेमाल

ज़िंदा पक्षियों का इस्तेमाल करना पशु क्रूरता (Animal Cruelty) के अंतर्गत आता है,जो कई देशों में गैरकानूनी है। भारत समेत अधिकतर देशों में इस पर प्रतिबंध है।

मानकीकरण और सटीकता:टेस्टिंग में उपयोग होने वाले पक्षी आकार, वजन और घनत्व के अनुसार पूरी तरह नियंत्रित होने चाहिए। ज़िंदा पक्षियों की शारीरिक बनावट,उड़ान की दिशा या मूवमेंट बदलती रहती है,जिससे टेस्ट का परिणाम असंगत हो सकता है।

नैतिक और वैज्ञानिक मानदंड:एविएशन इंडस्ट्री में नैतिकता और विज्ञान दोनों को ध्यान में रखते हुए"सिंथेटिक बर्ड"(gelatin-based bird projectiles) का उपयोग किया जाता है,जो असली पक्षी के जैविक गुणों की नकल करता है।

क्या अतीत में ज़िंदा मुर्गे का इस्तेमाल हुआ?

कुछ पुराने दौर के शुरुआती प्रयोगों में(जैसे कि1950-60 के दशक में),कहीं-कहीं ज़िंदा मुर्गे या मृत पक्षियों का उपयोग किए जाने की अपुष्ट रिपोर्टें सामने आई है,लेकिन वर्तमान में यह पूरी तरहअप्रासंगिक और इसेअवैज्ञानिकमाना जाता है।

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