नई दिल्ली (एडीएनए)
पश्चिम एशिया में दशकों से चला आ रहा ईरान और इज़रायल का शत्रुता भरा इतिहास अब एक नए मोड़ पर पहुंच गया है। खबरें हैं कि ईरान में सत्ता परिवर्तन की संभावनाएं बन रही हैं और इस पूरे घटनाक्रम में एक चौंकाने वाला नाम सामने आ रहा है,ईरान के पूर्व शाह मोहम्मद रज़ा पहलवी का बेटा रज़ा पहलवी, जो इन दिनों इज़रायल में हैं। माना जा रहा है कि अगर ईरान में मौजूदा कट्टरपंथी शासन को अपदस्थ कर राजशाही समर्थक ताकतें सत्ता में आती हैं, तो इससे पश्चिम एशिया में दशकों से चला आ रहा तनाव कम हो सकता है।
कौन हैं रज़ा पहलवी
रज़ा पहलवी ईरान के आखिरी राजा (शाह)मोहम्मद रज़ा शाह पहलवी के बेटे हैं, जिन्हें1979की इस्लामिक क्रांति के बाद सत्ता से हटाया गया था। उसके बाद रज़ा पहलवी अमेरिका और फिर इज़रायल में निर्वासन के जीवन में रहे हैं।वह खुले तौर पर ईरान की मौजूदा इस्लामिक शासन प्रणाली की आलोचना करते रहे हैं और ईरान में लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता की वकालत करते हैं।
ईरान में क्या बदल रहा है?
राष्ट्रपति की मौत के बाद अनिश्चितता
राष्ट्रपति इब्राहीम रईसी की हालिया हेलिकॉप्टर दुर्घटना में मौत ने सत्ता संतुलन बिगाड़ा है। नई चुनाव प्रक्रिया शुरू हो चुकी है,जनता में मौलवियों के शासन के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है।
आर्थिक संकट और जनाक्रोश
अमेरिकी प्रतिबंध,बढ़ती महंगाई,बेरोजगारी और महिलाओं की स्वतंत्रता को लेकर जनता में सरकार के खिलाफ असंतोष चरम पर है। खासकर युवाओं में बदलाव की भावना तेज हो रही है।
विद्रोही संगठन सक्रिय
देश के अंदर और बाहर से कई संगठन,जिनमें पूर्व सैनिक,बुद्धिजीवी और राजशाही समर्थक शामिल हैं,इस्लामिक रिपब्लिक को हटाने की मांग कर रहे हैं।
इज़रायल की भूमिका क्यों अहम है?
रज़ा पहलवी ने2023में एक ऐतिहासिक यात्रा के तहत इज़रायल का दौरा किया था। उन्होंने होलोकॉस्ट स्मारक पर पुष्पांजलि अर्पित की और पानी व ऊर्जा सहयोग पर भी बातचीत की थी। इज़रायल उन्हें ईरान में भविष्य के बदलाव की संभावित धुरी मान रहा है, जिससे दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य हो सकते हैं।
क्या इससे खत्म होगा ईरान-इज़रायल युद्ध का खतरा?
विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि कट्टरपंथी मौलवियों की जगह कोई उदार और लोकतांत्रिक नेतृत्व आता है,तो इससे कई फायदे हो सकते हैं।इसके बाद ईरान का परमाणु कार्यक्रम सीमित हो सकता है,इज़रायल और ईरान के बीच बातचीत के रास्ते खुल सकते हैं। सीरिया,यमन, गाज़ा जैसे मोर्चों पर जारी छद्म युद्ध खत्म हो सकता है। अमेरिका और पश्चिमी देशों से रिश्ते सामान्य हो सकते हैं।
लेकिन क्या यह इतना आसान होगा?
ईरान की रिवोल्यूशनरीगार्ड्सकिसी भी बाहरी हस्तक्षेप या राजशाही वापसी का कड़ा विरोध करेंगे।रूढ़िवादीमौलवी वर्गसत्ता छोड़ने के पक्ष में कतई नहीं है,इतनी आसानी से वह सत्ता से नहीं हटेगा। चीन औररूस भी ईरान की मौजूदा सत्ता के साथ अपने रणनीतिक हित जोड़े हुए हैं।रज़ा पहलवी को अभी भी बड़ी संख्या में ईरानी कट्टरवादी वर्ग“पश्चिमी कठपुतली”मानता है।हालांकी ईरान में सत्ता परिवर्तन की सुगबुगाहट ने वैश्विक राजनीति को नई दिशा में मोड़ दिया है। रज़ा पहलवी की संभावित वापसी केवल एक राजनीतिक घटनाक्रम नहीं,बल्कि वह पश्चिम एशिया में दशकों से चले आ रहे तनाव,युद्ध और अशांति का संभवतःनिर्णायक अंत हो सकती है।लेकिन यह राह आसान नहीं,यहटकरावऔर रणनीति की लंबी लड़ाई संभव है। अमेरिका की इंट्री सेयुद्ध और बढ़ने के भी आसार बन गए हैं,रूस भी इसमें शामिल हो गया तो यह तीसरे विश्वयुद्ध की तरफ भी मुड़ सकता है और फिर परमाणु हमलों का खतरा भी बढ़ जाएगा।