नई दिल्ली (एडीएनए)।
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से रेडियो के जरिये बातचीत के दौरान अंतरिक्ष पर गए भारत के शुभांशु शुक्ला ने असम और मेघालय के छात्रों से एक संवाद में कहा कि आप में कई छात्र अंतरिक्ष यत्री बन सकते हैं, लेकिन इसके लिए कड़ी मेहनत और खुद पर विश्वास बनाए रखने की जरूरत है। यही नहीं, आप चंद्रमा पर भी जा सकते हैं। शुभांशु ने कहा, 'मैं वापस आऊंगा और आपका मार्गदर्शन भी करूंगा। आपमें से कई भविष्य के अंतरिक्ष यात्री बनेंगे। कड़ी मेहनत करें और खुद पर विश्वास रखें, आप में से कोई चंद्रमा पर भी जा सकता है।'
अंतरिक्ष में 12 दिन बिता चुके शुभांशु से मेघालय और असम के सात स्कूलों के छात्र-छात्राएं शिलांग में उत्तर पूर्वी अंतरिक्ष उपयोग केंद्र (एनईसैक) में एकत्र हुए थे। छात्रों ने शुभांशु को 20 सवाल भेजे थे और 10 मिनट के हैम रेडियो से संपर्क कर बात की। शुभांशु ने बातचीत के दौरान छात्रों से अंतरिक्ष के अनुभव भी साझा किए। उन्होंने बताया कि वह अपने स्पेस स्टेशन से दिन में 16 बार सूर्योदय और सूर्यास्त को देखते हैं। बताया कि यह काफी रोमांचकारी होता है। स्पेस स्टेशन की दुनिया बिल्कुल अलग है। यहां अपने मन से कुछ भी नहीं कर सकते है। हर चीज के लिए एक नियम बनाया गया है। शुभांशु ने बताया कि अंतरिक्ष स्टेशन पर जीवन सूर्य के प्रकाश से नहीं, बल्कि ग्रीनविच मीन टाइम (जीएमटी) पर सेट घड़ी से संचालित होता है। 'हम सूर्य का अनुसरण नहीं करते। आईएसएस पर हम हर दिन 16 सूर्योदय और सूर्यास्त देखते हैं, क्योंकि हम हर 90 मिनट में पृथ्वी का चक्कर लगाते हैं।
छात्रों से बात करते हुए शुभांशु शुक्ला ने बताया कि सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण के चलते हमारी मांसपेशियों और हड्डियों को नुकसान पहुंचता है। इसलिए हम हर दिन ट्रेडमिल, साइकिल और शक्ति प्रशिक्षण मशीनों के जरिये कसरत करते हैं। मिशन के लिए और पृथ्वी पर वापस लौटने के लिए फिट रहना आवश्यक है। हमारा अधिकांश प्रशिक्षण असामान्य परिस्थितियों से निपटने में गुजरता है। शुभांशु ने बताया कि रोबोटिक्स और एआई हमारे मिशन का अभिन्न अंग हैं। हम कई आंतरिक और बाह्य कार्यों के लिए रोबोटिक भुजाओं का उपयोग करते हैं, जिससे अंतरिक्ष स्टेशन पर हमारा काम अधिक सुरक्षित और सुगम हो जाता है।