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रॉकेट टेक्नोलॉजी में अमेरिका, रूस और चीन से टक्कर

दिल्ली (एडीएनए)।

कम लागत, विश्वसनीय तकनीक और स्वदेशी रॉकेटों के बल पर भारत अब दुनिया का भरोसेमंद लॉन्चिंग हब बन चुका है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की रॉकेट टेक्नोलॉजी आज अमेरिका, रूस और चीन जैसे दिग्गज देशों को टक्कर दे रही है। PSLV, GSLV और LVM3 जैसे रॉकेटों की सफलता ने भारत को एक विश्वसनीय और कम लागत वाला लॉन्चिंग पार्टनर बना दिया है। जहाँ PSLV ने 104 उपग्रहों का एक साथ प्रक्षेपण कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया, वहीं GSLV-Mk III (अब LVM3) ने चंद्रयान-2 और चंद्रयान-3 जैसे मिशनों को सफलतापूर्वक लॉन्च कर भारत की वैज्ञानिक क्षमता का लोहा मनवाया। दुनिया में कई तरह के रॉकेट हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं।

 

भारत के प्रमुख रॉकेट और उनकी उपलब्धियां 

PSLV: ISRO का 'वर्कहॉर्स  

लॉन्च क्षमता: 1,750 किलोग्राम तक (सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा में) 

प्रमुख मिशन: मंगलयान (2013) 

पहले ही प्रयास में मंगल पर पहुंचने वाला भारत पहला देश है इसी के साथ  104 उपग्रहों का एक साथ लॉन्च (2017) कर भारत ने विश्व रिकॉर्ड बनाया है। इसके अलावा चंद्रयान-1 (2008) यानी चंद्रमा पर पानी की खोज भी हमरा प्रमुख मिशन रहा है। 

 

GSLV-Mk III (LVM3) यानी भारत का सबसे ताकतवर रॉकेट 

लॉन्च क्षमता: 4 टन तक (जियोस्टेशनरी ऑर्बिट में)। 

प्रमुख मिशन:  

चंद्रयान-3 (2023) – चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग। 

 -वनवेब सैटेलाइट्स (2023-24) – वाणिज्यिक लॉन्च बाजार में बड़ी सफलता। 

-गगनयान मिशन (2025)– भारत का पहला मानव अंतरिक्ष अभियान। 

 

SSLV: छोटे उपग्रहों के लिए सस्ता विकल्प 

लॉन्च क्षमता: 500 किलोग्राम तक (निचली कक्षा में)। 

-उद्देश्य: छोटे उपग्रहों को कम लागत में अंतरिक्ष में भेजना। 

-पहला सफल लॉन्च:EOS-07 मिशन (2023)। 

 

भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा 

- लॉन्च बाजार में हिस्सेदारी: ISRO की कम लागत और उच्च सफलता दर के कारण वैश्विक स्तर पर इसकी मांग बढ़ी है। 

- निजी क्षेत्र का योगदान: स्काईरूट एयरोस्पेस, अग्निकुल कॉसमॉस जैसी कंपनियां अब छोटे रॉकेट बना रही हैं। 

- रियूजेबल रॉकेट पर शोध: ISRO और निजी कंपनियां SpaceX की तर्ज पर पुन: प्रयोज्य रॉकेट विकसित करने पर काम कर रही हैं। 

 

भविष्य की योजनाएं 

- गगनयान मिशन (2025): भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष अभियान। 

- शुक्रयान मिशन (2026): शुक्र ग्रह के लिए पहला भारतीय मिशन। 

-स्पेस स्टेशन (2035 तक): भारत अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन बनाने की योजना बना रहा है।

भारत रॉकेट टेक्नोलॉजी में एक बड़ा खिलाड़ी बन चुका है और PSLV, GSLV जैसे रॉकेट्स से वैश्विक बाजार में अपनी पहचान बना रहा है। आने वाले वर्षों में SSLV और रियूजेबल रॉकेट टेक्नोलॉजी (जैसे SpaceX के Falcon 9) पर भी काम चल रहा है।

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