नई दिल्ली (एडीनए)।
पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान अभी सिर्फ रूस, चीन और अमेरिका के पास ही हैं। साल 2035 तक पांचवीं पीढ़ी का स्वदेशी विमान भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल होने की उम्मीद है। जानकारों की मानें तो अमेरिका के पास एफ-35 है। एफ-35 को कई सहयोगी देशों को भी निर्यात किया जाता है। वहीं चीन के पास 2017 से जे-20 है। चीन शेनयांग एफसी-31/ जे-31 का विकास कर रहा है। हालांकि ये अभी पूरा नहीं हुआ है और रूस के पास सुखोई-57 है। हालांकि स्टेल्थ और इंजन की सीमाओं के कारण इसे पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान मानने पर बहस होती रही है। उधर, भारत समेत विश्व के कई देशों पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों के निर्माण में लगे हैं। इनमें तुर्किये, जापान और दक्षिण कोरिया प्रमुख हैं। तुर्किये में टीएआई टीएफ कान ने 2024 में अपनी पहली उड़ान भरी थी। यह अभी विकास के चरण में है। दक्षिण कोरिया के केएआई केएफ-21 बोरामे को 4.5 पीढ़ी का लड़ाकू विमान माना जाता है, जिसे 2030 तक पांचवीं पीढ़ी के मानकों में अपग्रेड करने की योजना है। यूके और इटली के साथ ग्लोबल कॉम्बैट एयर प्रोग्राम के तहत जापान एफ-एक्स विकसित कर रहा है। इसका लक्ष्य छठी पीढ़ी की क्षमताएं हासिल करना है।