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क्या है रडार तकनीक और दुनिया में भारत कितना मजबूत

रामायण में सिंहिका नाम की एक राक्षसी का जिक्र आता है जो उड़ते हुए पक्षियों की छाया पकड़कर खा जाती थी। यह राक्षसी राहु की माता थी और समुद्र में रहती थी। क्या आज के आधुनिक रडार की तरह तब भी तरंगों के जरिए यह संभव था।

ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (G.P.S) के दौर में आदमी का बच्चा खो जाता है लेकिन हजारों किमी की यात्रा करने वाले साइबेरियन पक्षी का बच्चा नहीं खोता। रूस से चार हजार किलोमीटर की यात्रा करके साइबेरियन भारत के कई कोनों में पहुंचते हैं और सकुशल अपने देश लौट जाते हैं। लौटते वक्त क्या मजाल है जो किसी पक्षी का बच्चा छूट जाए। पक्षी अदृश्य तरंगों को पकड़ कर रूस से भारत आते-जाते हैं और इंसान कुछ कदम चलने में गूगल मैप खोलता है। वैज्ञानिकों ने इन तरंगों को पकड़ लिया और रडार का उदय हुआ, अब तो यह तकनीकि युद्ध जीतने के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हो गई है।

रडार (Radio Detection and Ranging) तकनीक आधुनिक रक्षा प्रणालियों की रीढ़ है। यह हवाई, जमीनी और नौसैनिक खतरों का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने में मदद करती है। भारत समेत दुनिया के कई देशों ने रडार तकनीक में अभूतपूर्व प्रगति की है,जिसमें छोटे पोर्टेबल रडार से लेकर एस-400 जैसी उन्नत मिसाइल रक्षा प्रणालियाँ शामिल हैं।

छोटे रडार सिस्टम: सैन्य और नागरिक उपयोग

छोटे रडार सिस्टम (मिनी-रडार या पोर्टेबल रडार) आजकल सीमा सुरक्षा, ड्रोन ट्रैकिंग और युद्धक्षेत्र निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

·         भारतीय सेना के पोर्टेबल रडार:जैसे Bharani (एलएंडटी द्वारा निर्मित),जो सीमा पर घुसपैठियों और ड्रोन का पता लगाता है।

·         हथियारों में इस्तेमाल:स्वदेशी अस्त्र मिसाइल में रडार सिस्टम लगा होता है, जो लक्ष्य को ट्रैक करता है।

·         ड्रोन रडार:छोटे ड्रोन्स को ट्रैक करने के लिए भारत इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम विकसित कर रहा है।

मध्यम रेंज के रडार:वायुसेना और नौसेना की ताकत

इन रडारों की रेंज 100-300 किमी तक होती है, जो हवाई हमलों और जहाजों की निगरानी के लिए उपयोगी हैं।

·         रोहिणी रडार (3D CAR): भारतीय वायुसेना में इस्तेमाल होने वाला यह रडार 180 किमी तक के लक्ष्य को ट्रैक कर सकता है।

·         अरुणिमा एयरबोर्न अर्ली वॉर्निंग रडार: एम्ब्रायर विमान पर लगा यह रडार हवाई खतरों का पता लगाता है।

लॉन्ग-रेंज रडार और मिसाइल डिफेंस सिस्टम

ये रडार 500 किमी से अधिक की दूरी पर लक्ष्य का पता लगा सकते हैं और मिसाइल हमलों से बचाव करते हैं।

·         स्वदेशी LRDE रडार: भारत का लॉन्ग-रेंज ट्रैकिंग रडार, जिसे बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस (BMD) प्रोग्राम में इस्तेमाल किया जाता है।

·         इज़राइली ग्रीन पाइन रडार: यह भारत के बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस शील्ड का हिस्सा है।

 एस-400 त्रियुम्फ: दुनिया की सबसे खतरनाक एयर डिफेंस सिस्टम

रूस की एस-400 त्रियुम्फ दुनिया की सबसे उन्नत वायु रक्षा प्रणाली है, जिसे भारत ने 2018 में खरीदा।

खासियत:

·         रेंज: 400 किमी (कुछ मिसाइलों की रेंज 600 किमी तक)।

·         स्पीड: मैक 14 (17,000 किमी/घंटा) की रफ्तार से उड़ने वाली मिसाइलों को मार गिराने की क्षमता।

·         मल्टी-टारगेट क्षमता: एक साथ 36 लक्ष्यों को ट्रैक और 72 मिसाइलें दाग सकता है।

·         भारत में तैनाती: पंजाब और राजस्थान सीमा पर चीन-पाकिस्तान के खिलाफ।

रडार कैसे काम करता है? और एस-400 सिस्टम की तकनीक

रडार एक ऐसी तकनीक है जो रेडियो तरंगों का उपयोग करके दूरस्थ वस्तुओं का पता लगाती है, उनकी दूरी, गति और दिशा मापती है। यह सैन्य और नागरिक दोनों क्षेत्रों में अहम भूमिका निभाता है। आज हम समझेंगे कि रडार कैसे काम करता है और एस-400 जैसी एडवांस्ड मिसाइल डिफेंस सिस्टम क्या खासियतें रखती है


रडार के मुख्य घटक:

ट्रांसमीटर: रेडियो तरंगें (माइक्रोवेव) उत्सर्जित करता है।

एंटीना: सिग्नल को भेजता और प्रतिध्वनि को ग्रहण करता है।

रिसीवर: परावर्तित सिग्नल को प्रोसेस करता है।

डिस्प्ले सिस्टम: लक्ष्य की स्थिति दिखाता है।

रडार का कार्य प्रणाली:

स्टेप1:रडार एंटीना से हाई-फ्रीक्वेंसी रेडियो वेव्स भेजता है।

स्टेप2:ये तरंगें किसी वस्तु (जैसे विमान, ड्रोन, जहाज) से टकराकर वापस लौटती हैं।

स्टेप3:रिसीवर इस प्रतिध्वनि (Echo) को पकड़ता है।

स्टेप4:समय अंतराल और डॉप्लर प्रभाव के आधार पर वस्तु की दूरी, दिशा और गति का पता लगाया जाता है।

 एस-400 त्रियम्फ: दुनिया की सबसे खतरनाक एयर डिफेंस सिस्टम

एस-400 की कार्यप्रणाली:

o    91N6E रडार (600 किमी रेंज) – दुश्मन के विमान/मिसाइल का पता लगाता है।

o    96L6E 3D रडार (300 किमी) – लो-फ्लाइंग स्टील्थ टारगेट को ट्रैक करता है।

कमांड सेंटर द्वारा टारगेट एनालिसिस:

o    सिस्टम AI और ऑटोमेशन का उपयोग करके खतरे का स्तर निर्धारित करता है।

मिसाइल लॉन्च:

o    अलग-अलग रेंज की मिसाइलें (40 किमी से 400 किमी तक) लक्ष्य पर दागी जाती हैं।

एस-400 की मिसाइलें और उनकी क्षमताएँ:

मिसाइल

रेंज

खासियत

48N6 (250 किमी)

250 किमी

हाई-स्पीड एयरक्राफ्ट को मार गिराने में सक्षम

40N6 (400 किमी)

400 किमी

स्टील्थ विमान और बैलिस्टिक मिसाइलों को नष्ट कर सकती है

9M96E (120 किमी)

120 किमी

अत्यधिक मोबाइल, एयर मेन्युवरेबल

एस-400 की खास विशेषताएं

 मल्टी-टारगेट एंगेजमेंट: एक साथ 80 लक्ष्य ट्रैक और 40 मिसाइलें दाग सकता है।
 
स्टील्थ टेक्नोलॉजी को चकमा देने की क्षमता (F-35, राफेल जैसे विमानों का पता लगा सकता है)।
बैलिस्टिक मिसाइल इंटरसेप्शन (5 किमी/सेकंड की स्पीड से आने वाली मिसाइलों को मार गिराने की क्षमता)।
इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर रेजिस्टेंस – जैमिंग और साइबर अटैक के खिलाफ सुरक्षित।

भारत में एस-400 की तैनाती और महत्व

·         लोकेशन: पंजाब, राजस्थान और असम में (चीन-पाकिस्तान की ओर से खतरों को न्यूट्रलाइज करने के लिए)।

·         चुनौतियाँ:

o    अमेरिका ने CAATSA (काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन्स एक्ट) के तहत भारत पर प्रतिबंध की धमकी दी थी

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